Thursday, June 24, 2021

जय जवान जय किसान

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 जैविक खेती क्या है ? 

खेती की वह विधी जिसमे रसायनिक उर्वरको एवं कीटनाशको के बिना या कम प्रयोग से फसलों का उत्पादन किया जाता है, जैविक खेती कहलाती है। इसका अहम उद्देश्य मिट्टी की उर्वरक शक्ति बनाए रखने के साथ साथ फसलों का उत्पादन बढ़ाना है।


जैविक खेती के उद्देश्य :

1. जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य यही है कि मिट्टी की उर्वरक शक्ति को नष्ट होने से बचाया जाए और खाने की चीजों जिनका उपयोग हम रोज करते है, उनमे रसायनिक चीजों के इस्तेमाल को रोका जाए।.

 2. फसलों को ऐसे पोषक तत्व उपलब्ध कराना, जो कि मृदा और फसलों मे अघुलनशील हो और सूक्ष्म जीवो पर असरदायक हो । 

3. जैविक नाइट्रोजन का उपयोग करके और जैविक खाद और कार्बनिक पदार्थो द्वारा रिसक्लिंग करना।

4. खरपतवार, फसलों मे होने वाले रोगो और किट के नाश के लिए होने वाली दवाइयो के छिड़काओ को रोकना, ताकि ये स्वास्थ को नुकसान ना पहुचा सके। 

5. जैविक खेती मे फसलों के साथ साथ पशुओ की देखभाल, जिसमे उनका आवास, उनका रखखाव, उनका खानपान आदि शामिल है, इसका भी ध्यान रखा जाता है।

 6. जैविक खेती का सबसे मुख्य उद्देश्य इसके वातावरण पर प्रभाव को सुरक्षित करना साथ ही साथ जंगली जानवरो की सुरक्षा और प्रकृतिक जीवन को सुरक्षित करना है।  

जैविक खेती से होने वाले लाभ

खेती मे सबसे महत्वपूर्ण 2 चीजे है, पहला किसान दूसरा किसान की जमीन और जैविक खेती अपनाने से इन दोनों को ही काफी लाभ है.जैविक खेती से किसान और उसकी जमीन को होने वाले लाभ :

 1. जैविक खेती अपनाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है, साथ ही साथ फसलों के लिए की जाने वाली सिचाई के अंतराल मे भी वृध्दी होती है ।

2. अगर किसान खेती मे रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं करता और जैविक खाद का उपयोग करता है, तो उसकी फसल के लिए लगाने वाली लागत भी कम होती है।

 3. किसान की फसलो का उत्पादन बढ़ता है, जिससे उसे लाभ भी ज्यादा होता है ।

4. जैविक खाद के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता मे भी सुधार आता है । 

 5. इस विधी के प्रयोग से भूमि के जलधारण की क्षमता बढ़ती है और पानी के वाष्पीकरण मे भी कमि आति है। 

आजकल हमारा पर्यावरण भी काफी दूषित होता जा रहा है और खेती के लिए जैविक तरीको के प्रयोग से हमारे पर्यावरण को भी काफी लाभ होते है।

जैविक खेती से पर्यावरण को होने वाले लाभ

1. भूमि का जलस्तर तो बढ़ता ही है, साथ ही साथ रसायनिक चीजों के प्रयोग को रोकने से मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन मे पानी से होने वाले प्रदूषण मे भी कमि आति है।

 2. पशुओ का गोबर और कचरे का प्रयोग खाद बनाने मे करने से प्रदूषण मे कमि आति है और इसके कारण होने वाले मच्छर और अन्य गंदगी कम होती है, जिससे बीमारियो की रोकथाम होती है।

 3. अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार को देखा जाए, तो वहा भी जैविक खेती के द्वारा उतापादित हुये पदार्थो की ज्यादा माँग है।

जैविक खेती करने से फसल उत्पादन बढ़ता है, जिससे किसानो की आय भी बढ़ती है.भारत जैसे कृषि प्रधान देश मे यह बहुत ही आवश्यक है, कि किसान खेती के जैविक तरीको का इस्तेमाल करे, जिससे फसलों का उत्पादन बड़े.इससे विश्व मे खाद्य आपूर्ति की समस्या तो हल होगी ही साथ ही साथ किसानो का भौतिक स्तर भी सुधरेगा.भारत मे अधिकतर जगह खेती वर्षा पर आधारित है और आजकल वर्षा समय के अनुरूप नहीं हो रही, जिससे खेती को भी नुकसान होता है| अगर किसानो द्वारा जैविक खेती को अपनाया जाए, तो इस समस्या से भी निजात पाया जा सकता है।

जैविक खेती करने के तरीके

भूमि

गेहूं की खेती हेतु पर्याप्त जलधार क्षमता वाली होमट, काली एंव बलुई दोमट भूमि उत्तम रहती है. अधिक रेतीली, क्षारीय एंव अम्लीय उपयुक्त नहीं रहती है.

गेहूं की जैविक खेती कैसे करें, जानिए विधि

 बुवाई का समय

असिंचित क्षेम में बुवाई का उत्तम समय मध्य अक्टूबर से नवबंर का प्रथम सप्ताह है. सिंचाई की सुविधा होने पर मध्य नवबंर तक बुवाई कर सकते है.

खेत की तैयार

चूंकि अधिकांश क्षेत्र वर्षा आधारित या कम सिंचाई वाले है. इसलिए रबी के मौसम की फसल में जल संरक्षण का महत्व बढ़ जाता है. ऐसे में खरीफ की फसल मक्का अथवा सोयाबीन की कटाई के तुरन्त बाद खेत की 2-3 जुताई कर पाटा चलाकर मट्टी को कुरकुरा बनाकर नमी संपक्षित कर लेते है. अक्टूबर माह में देर से जुताई करने पर मनी का हाल तेजी से होता है. पटा चलाने से पूर्व कम्चोस्ट, होबर खाद तथा धन जीवामृत को खेत में छिड़कर पाटा चलाते है.

खाद एवं जैव-उर्वक

खाद की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर सुनिश्चित करते है. सामान्य मृदा में 10-12 टन सड़ी गोबर अथवा कम्चोस्ट खाद तथा 400-500 किलोग्राम धन जीवामृत प्रति एकड़ आवश्यक होता है. जैव उर्वरक एजोरोबैक्टर, पीएसबी, पोटाश एंव जिंक घोवक जीवाणु कल्टर का उपयोग बुवाई से पूर्व बीज उपचार करते समय करें. इन कल्चर की मात्रा उत्पादनकर्ता की संस्तुत के आधार पर निश्चित करें.

बीज का मात्रा

बीज की मात्रा बीज के अंकुरण क्षमता एंव दोनों के आकार पर निर्भर करता है. छोटे दानों की प्रजाति तथा अंकुरण 70 प्रतिशत होने की दशा में 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ तथा बड़े दाने वाली प्रजाति 70 प्रतिशत अंकुरण होने पर 50 किलोग्रम प्रति एकड़ बोते है.

बीज उपचार

बीज जमाव परीक्षण कर मात्रा निर्धारण के पश्चात बीज उपचार करते है. इसके लिए ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी की 5-10 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचारित करते है. इसके पश्चात जीवाणु खाद, बायोफर्टीलाइजर, जैव उर्वरक, जीवाणु कल्चर से बीजे से उपचारित करते है यादि घोल वाला कल्चर है तो उसमें आवश्यक मात्रा में साफ पानी मिलाकर बीज में मिलाते है यदि पाउडर वाला कल्चर है तो 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में 30 मिनट उबालकर ठंडाकर पाउडर को कल्चर की आवश्यक मात्रा मगड़ के पानी में मिलाकर बीज में मिलाते है. उपचारित बीज को छाया वाले स्थान पर थोड़ी देर फैला देते है. इसके बाद हुवाई करते है. उपतारित बीज को 2-3 घेरे के अंदर अवश्य बुवाई करें.

बुवाई की विधि

गेहूं की बुवाई छिटकर तथा पंक्ति में दोनों विधि से की जाती है. पंक्ति में बोने हेतु बैल के पीछे बूड़ में बैक चालित सीड़ ड्रिक अथवा ट्रैक्टर चालित सीड़ ड्रिक का प्रयोग करते है. पंक्ति में बुवाई करने पर कतार से कतार के बीच की दूरी 23-25 सेमी तथा गहराई 4-5 सेमी रखते है. बुवाई में इस बात का मुख्यरूप से ध्यान रखते है कि विधि कोई भी हो परन्तु फसल मने 400-500 वाली प्रति वर्ग मीटर मिलना चाहिए.

तरल जैविक खाद एंव उपयोग

गेहूं की अच्छी पैदावार हेतु खड़ी फसल में तरल खाद का प्रयोग आवश्यक होता है. इसके लिए पहली सिंचाई के समय पानी के साथ 400 लीटर जीवामृत तथा 400 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर घोल का प्रयोग करते है और इतनी ही मात्रा प्रत्येक सिंचाई में देते है. पहली सिंचाई के पश्चात जब फसल 4-8 इंच की हो जाए, तब 1-2 लीटर जीवामृत तथा 1-2 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर घोल को 10-12 लीटर पानी में मिलाकर दोपहर के बाद खड़ी फसल पर स्प्रे करते है. स्प्रे एक सप्ताह के अन्तराल पर फूल आते तक करने से अच्छी पैदावार मिलती है छिड़काव इस प्रकार करें कि पूरा पौधा गीला हो जाए.

सिंचाई एंव जल प्रबन्धन

फसल की सिंचाई की संख्या उपलब्ध जब संसाधन एंव फसल की अवस्था पर निर्भर करती है. जहां तक संभव हो स्प्रिंकलर से सिंचाई करें. गेहूं के लिए 3-4 सिंचाई पर्याप्त रहती है.

पहली सिंचाई  – बुवाई के2-30दिन पर जड़ो के विकास 

दूसरी सिंचाई  – बुवाई के45-50दन पर कल्ले फूटने 

तीसरी सिंचाई –  बुवाई के70-75दिन पर बलिया निकलते समय

चौथी सिंचाई  – दाना पकते समय करते है.

खरपतवार नियंत्रण

 जैविक विधि से गेहूं उत्पादन में खेत को खर पतवार मुक्त रखना आवश्यक है. इसके लिए भली प्रकार सड़ी गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद को प्रयोग करें. फिर भी यदि खरपतवार उगते है तो उन्हें आरम्भिक अवस्था में उखाड़कर निराई-गुड़ाई कर नष्ट कर दें. नियामित फसलचक्र एंव सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करने से खर पतवार कम होते है. खेत के साथ-साथ मेड़ पर उगे खर पतवार को भी दराती की सहायता से काट दें, जिससे उनमें फूल बीज वन कर प्रसारण न हो .

फसल संरक्षण

सामान्यत: गेहूं की फसल पर कीट रोग का प्रयोग न के बराबर होता है, फिर भी कभी-कभी माहुं का प्रकोप देखा गया है. ऐसे में 5 प्रतिशत मीन बीड का राख अथवा 5 मि.ली. प्रतिलीटर पानी में नीम का स्प्रे करना लाभदायक होता है.

            दीमक प्रभावित क्षेत्र में बुवाई के समय एक बड़े चने के आकार का हींग को लेकर 3-5 ली गाय के दूध,घी में घोलकर पूरे खेत में स्रप्रेकर बुवाई कर दें.

            बुवाई के पश्चात छिद्र युक्त मटका में सूखे गोबर, उपले, मक्का की गिल्ली भर कर मुहं पर कपड़ा बाधकर खेत के किनारे गाड़ दें. इसे निकाल कर मुर्गी को खिला दें अथवा जलाकर नष्ट कर दें.

            गेस्आरोग के लक्ष्ण दिखाई देने पर टाइकोडरम जैविक फफूदनाशी 10 ग्राम लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें. रोग रोधी क़िस्मों की बुवाई करें.

फसल कटाई

जब फसल पूरी तरह पक जाए तथा दानों में नमी 12-18 प्रतिशत रहे, पौधा तथा बाली दोनों सूखी हो कटाई करना चाहिए.

कटाई के पश्चात 2-3 दिन फसल के रखने के पश्चात मड़ाई करते है. मड़ाई से पूर्व प्रेसर की अच्छे से सफाई कर लेते है, जिससे किसी समय फसल के दाने अथवा अन्य खेत के गेहूं के दानों का मिश्रण जैविक फसल में न हो.

आम की जैविक खेती:

आम हमारे देश में सबसे अधिक उगाये जाने वाले फलो में से एक है। आम को फलों का राजा भी कहा जाता है।

            आम पुरी दुनिया भर में बड़े चाव से खाया जाने वाला फल है, ओर इसकी खपत भी बहुत ज्यादा है। भारत के आमो की मांग पूरे विश्व है लगातार बानी रहती है।


            कई आमों का स्वाद, आकार और बीज का आकार भिन्न-भिन्न होता है ओर ये उनकी किस्मो पर निर्भर करता है।

आम की उन्नत किस्में का विवरण:

आम की उन्नत किस्में का विवरण:

आम के किस्मों की बात करे तो कुछ प्रमुख किस्मे: दशहरी, केसर, मल्लिका, लंगड़ा बनारसी, आम्रपाली, सुंदरजा, चौसा और अल्फोंसो हैं। जैविक खेती के द्वार पैदा किये गये आम उर्वरक के इस्तेमाल के द्वारा पैदा किये गये आमो से कही अधिक स्वादिष्ट, बेहतर क़्वालिटी ओर पोषक तत्वों से परिपूर्ण होते है।

आम खाने के लाभ:

आम स्वास्थ्य के लीये बहुत लाभकारी होता है। आम खाने से कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित किया जा सकता है, इससे कैंसर से बचाव होता है तथा त्वचा को साफ करने में भी मदतगार होता है।

आम की जैविक खेती क्या होती है?

आम की जैविक (organic) खेती एक तरह की प्राकर्तिक खेती होती है, जिसमें हम प्रकृति में उपलब्ध पदार्थों का इस्तेमाल करते है।

            आम की जैविक खेती सस्ती खेती भी मानी जाती है क्यों कि इस खेती में हम कीटनाशक, उर्वरक, तथा सिंथेटिक उर्वकों का प्रयोग नही करते है। इस तरह की आम की जैविक खेती को अपना कर हम खर्चो में काफी कमी कर सकते है।


            चूंकि यह एक जैविक खेती है तो इस खेती के द्वारा प्राप्त फलो मैं उच्च पौष्टिक तत्व मौजूद होते है, ओर ये स्वाद मैं भी बहुत अच्छे होते है। आम की जैविक खेती करने का अहम मकसद कीटनाशक ओर यूरिया मुक्त फल उगाना है।

आम की जैविक खेती करने के फायदे:

● जैसे-जैसे लोग जैविक खेती के द्वारा उगाये गये फलो की खूबियों को जान रहे है वैसे-वैसे मार्किट में जैविक फलो की मांग भी बढ़ती जा रही है।

            ● आम की जैविक खेती को अपना कर आप हानिकारक उर्वरक तथा रसायनों को खरीदने से भी बच रहे है, जो काफी महँगे होने के साथ-साथ आप के स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचा रहे है।


            ● जैविक खेती के द्वारा उगाये गये फलो का दाम भी उर्वरकों के द्वारा उगाये गये फलो से काफी ज्यादा मिलता है।

            ● जैविक विधि से उगाये गये फलो को बेचने में किसानों को कोई दिक्कत भी नही आती है। ज्यादातर लोग आम को उनके बागों से ही खरीद के ले जाते है।

            ● जैविक विधि से उगाये गये फलो की लागत भी कम होती है तथा ये वातावरण को कोई नुकसान भी नही पहुचाते है।

जैविक आम की खेती की शुरुआत कैसे करें ?

आम की जैविक खेती की सुरूआत हम उसके पौधे को बड़े करने से सुरु कर सकते है। पौधों को बड़े करने से लेकर उसके फल देने तक हम उसका प्रबंधन जैविक प्रणाली से करते है।

            जैविक प्रणाली में हम पौधों की खरपतवार से लेकर उसके पोषक तत्वों का प्रबंधन करते है। हम कीटनाशक, उर्वरक, तथा सिंथेटिक उर्वकों का प्रयोग नही करते।

            परम्परागत खेती के सिस्टम को बदल कर ही हम जैविक खेती को बढ़ावा दे सकते है। जैविक खेती को अपनाने के लिये हमको नई नीतियों को भी अपनाना होगा।

            हमें उर्वरकों तथा सिंथेटिक रसायनों के उपयोग से बचना होगा। आज कई किसान ऐसे है जिन्होंने जैविक (organic) खेती को अपनाया है।

            जैविक आम की खेती की सुरूआत आप छोटे स्तर से भी कर सकते है। ऐसा करने से जोखिम भी कम होता है तथा सीखने को भी बहुत कुछ मिलता है।

            छोटे स्तर से सुरूआत करने से आप अपने बागों का मैनेजमेंट भी अच्छे तरीके से कर सकते हों और अगर कोई समस्या आ जाये तो उसका निस्तारण भी अच्छे से कर सकते हो।

            जैसे-जैसे आप अनुभव और ज्ञान प्राप्त करते जायेंगे वैसे-वैसे ही आप अपने बागों का विस्तार कर सकते है और बड़े स्तर पर आम की जैविक खेती कर सकते है।

जैविक खेती में मिट्टी की गुणवत्ता :

● आम की जैविक खेती में मिट्टी की सेहत बहुत अहम होती हैं।

            ● मिट्टी की सेहत हो बढ़ाने के लिये जैविक संसाधनों का इस्तेमाल करते है।

            ● आम की जैविक खेती में प्रबंधन का बहुत अहम रोल होता है। हमें प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए।

            इस तरह के मैनेजमेंट को अपना कर हम आम की जैविक खेती को बड़े आराम से कर सकते है और उच्च गुडवत्ता के फल को प्राप्त कर सकते है।

आम की खेती के लिए जलवायु और भूमि का चयन

आम की जैविक खेती उष्ण एव समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में कर सकते है। आम की जैविक खेती के लिए 23 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उचित माना जाता है।

            आम की जैविक खेती के लिये ऐसी मिट्टी का चुनाव करना सही होता है जिसमें जैविक पदार्थों की मात्रा ज्यादा हो तथा सूक्ष्म पोषक तत्व भरपूर मात्रा में हो तथा कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो।

            अगर मिट्टी का PH 7.6 से अधिक है तो ऐसी मिट्टी में आम की जैविक खेती नही करनी चाहिये। आम की जैविक खेती जलोढ़ मिट्टी से लेकर लेटेरिटिक तक सभी प्रकार की मिट्टी में अच्छी तरह से कर सकते है।

            इसके अलावा लाल दोमट मिट्टी भी आम की जैविक खेती के लिये अच्छी मानी जाती है। काली मिट्टी में आम की खेती नही करनी चाहिये क्योंकि इसमें पोषण तत्वों की कमी होती है।

आम की खेती के लिये जगह का चुनाव निम्न बातो को ध्यान में रख कर करना चाहिए जैसे:

 ● जिस मिट्टी का उपयोग आप आम की खेती के लिये कर रहे है उसमें भारी धातू या भारी धातु के अवशेष कार्बनिक मानकों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक नहीं होने चाहिए। 

            ● आम की खेती के लिये उपजाऊ भूमि का चयन करना चाहिये। बंजर या ऊसर की जमीन पे आम की खेती नही करनी चाहिये।

            ● ऐसी जगह का चुनाव नही करना चाहिये जहाँ अंधी या तूफान आने की समस्या हो।

            ● चिकनी बलुई मिट्टी आम की खेती के लिये अनुकूल होती है क्यों कि इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है तथा पानी की आवश्यकता भी कम होती है। चिकनी बलुई मिट्टी जैविक पदार्थ को अच्छे से अवशोषित कर सकती है, जो जैविक आमो के अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है।

● जिस जगह का चुनाव कर रहे है उस जगह खरपतवार, किसी प्रकार की बीमारी या कीटो का प्रकोप ना हो। ऐसा होने पे आप की फसल प्रभवित हो सकती है।

आम के पेड़ लगाने का तरीका:

आम की अच्छी पैदावार लेने के लिये आम के पेड़ लगाने का तरीका तथा पेड़ लगाने की जगह तथा एक पेड़ से दूसरे पेड़ की बीच की दूरी का ज्ञान होना बहुत जरूरी होता है।

            एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच की दूरी आप के आम के फलो की पैदावार को प्रभावित कर सकते है। आम के पेड़ों से पेड़ों के बीच की दूरी आम की प्रजाति तथा लगाने की जगह पे निर्भर करता है। 

गड्ढों को तैयार करते समय ध्यान देने योग्य बातें:

ऐसी जगह जहाँ बारिश कम होती है वैसी जगहों पर आम के पेड़ों को एक दूसरे से 30 ft से 32 ft की दूरी पर लगाना चाहिए।

            ऐसी जगह जहाँ बारिश बहुत ज्यादा होती है और जमीन की गुडवत्ता भी अच्छी हो वैसी जगह आम के पेड़ों से पेड़ों के बीच की दूरी 40 ft से 42 ft होनी चाहिये।


            पेड लगाने के लिये गड्ढा बरसात आने से पहले ही खोद लेना चाहिए ताकि बरसात में होने पे पानी इन गड्ढो में भर जाये और जमीन मैं अच्छी नमी बन जाये जो पौधों को बढ़ने में मदत करता है।

            गड्ढो का आकार 3 ft लंबा 3 ft चौड़ा ओर 3 ft गहरा होना चाहिये। इन गड्ढो का आकार आम की किस्मो तथा मिट्टी की गुडवत्ता के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।

आम की खेती में उपयोग होने वाले जैविक उर्वरक:

1. प्राकृतिक खनिज भण्डार जैसे हाइड्रेटेड लाइम, इमस्टोन पाउडर, गुआनो, मैग्नीशियम ऑक्साइड या लौह आदि का उपयोग कर सकते है। पौधे अपना पोषण मिटटी मैं मौजूद कार्बनिक और खनिज स्रोतों से प्राप्त करते हैं।

  2. फोलिक जैविक उर्वरक जो हमें फलो तथा मछली के अमीनो एसिड से प्राप्त होता हैं।

            3. जानवरो के अपशिष्ट ( गोबर इत्यादि ) को पौधों के अवशेषों ( पत्ते ,खराब फल इत्यादि ) के साथ मिला कर सड़ाया जाता है, ओर कुछ दिनों बाद वो खाद (वर्मी कंपोस्ट) का रूप ले लेती है जिसमें सूक्ष्मजीवों की भरमार होती है जो पौधों के स्वास्थ्य के लिये बहुत अच्छा होता है।


            4. तरल कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ जो खाद्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसमें फायदेमंद सूक्ष्मजीवों की भरमार होती है।

पौधों की देखभाल:

आम के पेडों का आकार नियंत्रित करने और फलो के आकार तथा रंग में सुधार करने के लिये पेड़ो की छटाई करना बहुत महत्वपूर्ण है। शाखाओं की छंटाई तीन साल में एक बार अगस्त-सितंबर के दौरान की जा सकती है।

            आम के पेड़ों की काट-छाट अच्छी ताजी हवा और पर्याप्त रोशनी के लिये भी बहुत जरूरी होता है। आम के पेड़ों की काट-छाट करने से पेड़ तथा फल दोनों रोगों से बचे रहते है।

            छंटाई के द्वारा सुख चुकी टहनियों को भी समय रहते हटा दिया जाता है जिससे पेड़ स्टेम-एंड रोट जैसी बीमारियों से भी बच जाता है।

 जरूरत से ज्यादा झूलती हुई टहनियां जो जमीन को छू रही हो और जो एक दूसरे के ऊपर लटकी हो और जो टहनियां कमजोर होती है उनको तोड़ के हटा देना चाहिये जिससे प्रकाश और अच्छी हवा प्राप्त हो सके

आप सभी किसान भाईयो से निवेदन है पर्यावरण वा अच्छा स्वास्थ्य के लिए पेसिटिसाईड का ईसतेमाल ना कर के आरगिनिक खेती को आपनाऐ

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